मैं? मैं तुम्हे लिख रहा हूँ।
बड़ा रूहानियत सा मौसम है और दिल जैसे आसमान में उड़ रहा है पंछियो के साथ। ठंडी हवाएँ चल रही है और जैसे महीनों बाद किसी महीन सुकून का एहसास हो रहा है। मैं एक पेड़ का लहराना देख रहा हु एकटक और यकायक होती बारिश की हल्की हल्की फुहार ने दिल के किसी कोने में बचे बचे कुछे दर्द को भी खत्म कर दिया है। ज़िस्म को छूती एक एक बूंद किसी कहानी की तरह अंदर घुल रही है जिसके किरदार खुशी से झूम रहे है। मिट्टी की खुशबू अपने सौंधेपन में सबकुछ महका रही है और ऐसा लग रहा है भरी दोपहरी मे किसी ने खुशबू का फवारा खोल दिया हो
दोपहर जिसे देखके हम खुद को खो देते है, कुछ कह देते है। आसमान से या अपने आप से पर जैसे उड़ने लगते है जज्बात, ख्याल और रुमानियत सी छा जाती है। हम वो सबकुछ कह देते है जो हम सोचते थे कि कभी ना कह पाएंगे। पर रंगों से भरी एक तस्वीर जो कि अपने आप मे हज़ारो चेहरे लिए है। जिसके अपनेआप में अनगिनत एहसास है, जज्बात है, जिसकी हर रोज़ एक नई दास्तान है। एक सुबह जो सिर्फ सुबह होने से कही ज्यादा है। जैसे कि मुकम्मल कहानी जो कि खत्म हो चुकी है और फिर भी बाकी है जिसका कोई अंतिम छोर नही और फिर भी पूरी एक कहानी है।
एक अच्छी शाम को देखते ही हमारा दिल हलका हो जाता है और हम खुद को आज़ाद कर देते है खुले गगन में। हम कहानियां बुनते है, खुली आँखों से सपने देखते है, छत लांघते है और खुद को किसी मोड़ पे छोड़ आते है मगर वंहा से आज भी गुजरने वाली बस लौट के वापिस नही आती या कही गायब हो जाती है तुम्हारी ही तरह जैसे तुम ख्वाब मे तो आती हकीकत मे नही
#preetsinghsr
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