मैं तुम्हारे पन्नों से अल्फ़ाज़ चुरा लूं
तो कैसा हो
जो कभी तुम्हारी आंखों से राज़ चुरा लूं तो कैसा हो
अभी तो छुपाए फिरते हो,हम से अपने हालात
जो कह ना पाते हो,वो बात चुरा लूं तो कैसा हो
जी करता है बस जाऊं,तेरी इन आंखों में
पर बैरन नींद ही ना आए इन में
सोचता हूं, जहां से रात ही चुरा लूं तो कैसा हो
सच ! क्या बात है तुम में,कि कुछ भी भूला नहीं जाता
ये तेरे दिल लुभाने वाले अंदाज़ चुरा लूं तो कैसा हो
कब तक बने रहेंगे हम यूं ही ग़ैर से
कभी तुम भी हमको थोड़ा सा चुरा लो तो कैसा हो।।
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