मन की लिखूँतो शब्द कम पड़ जाते है


मन की लिखूँ
तो शब्द कम पड़ जाते है
और सच लिखूँ
तो अपने रूठ जाते है
जिंदगी को समझना
बहुत मुश्किल है जनाब
कोई सपनों के ख़ातिर
अपनों से दूर रहते है
कोई अपनों के ख़ातिर
सपनों से दूर हो जाते है
कोई पराया होकर भी अपना है
कोई अपना होकर भी पराया है
कभी खट्टी कभी मीठी
ये ज़िंदगी है जनाब 
रंगबिरंगी कहलाती है

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